सागवाड़ा/ बदलते दौर में शहरों से लेकर देहात में पर्वों को मनाने के पारंपरिक तरीकों में बदलाव आए हैं, लेकिन वागड़ अंचल में दीपावली मनाने की विशिष्ट परंपराएं अब भी कायम है।
वागड़ में दीपावली पर दिवाली आणा (गौना) और मेरीयु पुराने (विशेष प्रकार के दीपक में तेल पुरवाना) की विशिष्ट परंपरा अलग पहचान देती है। यहां यह खास परंपरा नवविवाहितों से जुडी हुई है, जिसमें नवविवाहिता को अपने ससुराल में दीवाली का पर्व मनाने के साथ ही नवविवाहित जोड़े को अपने परिजनों के घर जाकर मेरीयु (विशेष प्रकार के दीपक) में तेल पुरवाना होता है। इस आयोजन में प्रकाश और आतिशबाजी के साथ ही घर और गांव का वातावरण हंसी-ठिठोली से चहकने लगता है।
दीपक की तरह प्रकाशित रहे जीवन
पंडितजयदेव शुक्ला के अनुसार दीपोत्सव पर मेरियु अर्थात दीपक में तेल पुराने के पीछे तर्क यह है कि नवविवाहित जोड़े का पूरा जीवन दीपक की तरह प्रकाशित रहे। दुल्हन द्वारा दीपक में तेल पुराने का मतलब यह है कि जीवन को सफल बनाने के लिए दोनों को ही समान रूप से प्रयासरत रहना होगा। साथ ही बताया कि मेरियु परंपरा नवविवाहितों को सुखी और समृद्ध जीवन बिताने के लिए घर के बड़े बुजुर्गों के अशीर्वाद से मनाया जाता है। ऐसी लोक मान्यता है कि इससे इन नवविवाहितों का जीवन सुखमय और खुशहाल होता है।
दिवाली से पहले होता है आणा
दिवाली आणे की परंपरा के तहत दीपावली से कुछ दिन पूर्व नवविवाहिता के आणे की रस्म निभाई जाती है। जिसमें शादी के बाद की पहली दिवाली के पर्व को ससुराल में मनाने के लिए निमंत्रण देने नवविवाहिता को अपने मायके से लाने के लिए दूल्हे के साथ ही उसके भाई मित्र जाते हैं। दुल्हन उनके साथ अपने ससुराल आती है।
मेरीयु पुराने की विशिष्ट परंपरा
स्थानीय रिवाज के अनुसार दीपावली के अगले दिन नववर्ष की शुभवेला में सुबह के समय नवविवाहित जोड़े की मेरीयु पुराने की रस्म निभाई जाती है। जिसमें जोड़े को अपने स्वयं के घर के साथ अपने निकटतम परिजनों के घरों में जाकर मेरीए (दीपक) में तेल पुराना होता है। दूल्हा पंचमुखी अथवा एक मुखी मेरीया लेकर दरवाजे पर खड़ा रहता है। घर की महिलाएं तेल लेकर आती है और नवविवाहित दुल्हन के हाथों से मेरीए में तेल पुरवाती हैं। इस दौरान दूल्हा-दुल्हन पक्षों के परिजन इष्टमित्र साथ रहते हैं।