जन-जन की आस्था के केंद्र पावन स्थल श्री रघुनाथजी मंदिर -भिलूड़ा

Shri Raghunathji Temple Bhiluda

जानिए, श्री रघुनाथजी के पावन स्थल की विशेषताएँ !

भिलूड़ा गांव ना सिर्फ छोटी अयोध्या है बल्कि एक पावन तीर्थ स्थल

श्री रघुनाथ जी (Shri Raghunathji Tample) के विशाल मंदिर के कारण भिलूड़ा गांव ना सिर्फ छोटी अयोध्या कहलाया बल्कि इसे पावन तीर्थ स्थल भी माना गया। डूंगरपुर की सागवाड़ा तहसील से 8 किलोमीटर दूर बांसवाड़ा मार्ग पर स्थित भीलूड़ा गांव माही नदी के मुहाने पर स्थित है। इसी गांव में विराजित है वागड़ क्षेत्र की परम आस्था के प्रतीक श्री रघुनाथ जी।  श्री रघुनाथ जी के पावन स्थल  आमतौर पर भगवान राम का विग्रह श्वेतवनी होता है वहीं भिलूड़ा के रघुनाथ जी श्यामवनी है.  ऐसा कहा जाता है की करीब 1000 साल पुराने इस मंदिर में पहले भगवान विष्णु का विग्रह था, लेकिन 225 साल पहले महारावल विजय सिंह के कार्यकाल में भगवान विष्णु के स्थान पर रघुनाथ जी के चमत्कारी विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई और भगवान विष्णु को मंदिर के परिसर में ही रघुनाथ जी के बगल में बैठाया गया।

भिलूड़ा गाँव के पवित्र स्थल से जुड़ी पौराणिक कथा

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एक कथा के अनुसार, रघुनाथ जी के इस विग्रह को बनाने वाले शिल्पकार को आंखों से दिखाई नहीं देता था। उसने भाव-भक्ति के आधार पर भगवान का जो स्वरूप पाषाण पर उतारा वो स्वरूप एक अलौकिक छवि लिए हुए है। इस विग्रह में जहां धनुष-बाण के कारण भगवान राम की छवि दिखाई देती है, वहीं एक पैर का अंगूठा नहीं होने के कारण इसे भगवान श्रीकृष्ण के रूप में भी देखा जा सकता है। रघुनाथ जी के दाईं तरफ लक्ष्मण और बाईं तरफ माता जानकी के विग्रह छोटे रूप में स्थापित हैं। राम, लक्ष्मण और जानकी का ये स्वरूप भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की समानता लिए हुए है जो कृष्ण, बलराम और राधा को जीवंत करता है।  

श्री रघुनाथजी मंदिर भिलूड़ा गांव

श्रीरघुनाथ जी का विग्रह कमर से कुछ घुमाव लिए हुए है। इस कारण इस विग्रह में कृष्ण अवतार की झलक साफ नजर आती है। मंदिर में लगी एक शिलालेख के अनुसार महारावल जसवंत सिंह जी द्वितीय के शासनकाल में विक्रम् संवंत 1879 आषाढ़ शुक्ल 11 रविवार के दिन मंदिर के शिखर का निर्माण पूर्ण होने पर रघुनाथ जी की पूर्ण प्राण-प्रतिष्ठा गर्भ-गृह में कराई गई थी। इसके बाद भी समय-समय पर मंदिर पर जिर्नोधार का कार्य डूंगरपुर नरेशों द्वारा कराया जाता रहा. वागड़ के श्री रघुनाथ के भिलूड़ा गांव पहुंचने के पीछे एक कथा है।

Shri Raghunathji Mandir Bhiluda, the holy place of faith of the people
भिलूड़ा के रघुनाथ जी

भिलूड़ा गांव (Bhiluda Village) के रघुनाथ जी के बारे में कहा जाता है कि,

भिलूड़ा गांव (Bhiluda Village) के रघुनाथ जी के बारे में कहा जाता है कि जब शिल्पकार ने विग्रह का काम पूरा किया तब महारावल विजय सिंह ने विग्रह को अयोध्या में मंदिर बनाकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कराने पर विचार किया। अपने सेवकों को विग्रह अयोध्या ले जाने का आदेश देकर वो सभी इंतजाम कर अयोध्या चले गए. रघुनाथ जी के विग्रह को बैलगाड़ी में रखकर अयोध्या ले जाया जा रहा था कि रात होने के कारण भिलूड़ा गांव में विश्राम करने के लिए सभी रुक गए. इधर उसी रात महारावल को स्वप्न में निर्देश मिले कि मूर्ति की स्थापना वहीं होगी जहां मूर्ति ने रात्री में विश्राम किया है। इधर काफी जतन के बाद भी रघुनाथ जी का ये विग्रह एक कदम भी आगे नहीं सरका, तब महारावल के निर्देश पर रघुनाथ जी को इस मंदिर पर विराजित कराया गया। 

श्री रघुनाथजी  (Shri Raghunathji Tample) के इस अलौकिक विग्रह से निकला तेज ही है कि जिसने भी तनमयता अराधना की, वो भाव-विभोर हो नाचने लगा। इस मंदिर के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर पंचतत्व स्थापित हैं। इन पंचतत्वों के कारण ही भगवान के विग्रह में इतना आकर्षण है कि भगवान के दर्शन की लालसा दूर से ही जागृत हो जाती है। यही नहीं, एक बार ऐसा भी हुआ है कि भगवान की भक्ति में लीन एक भक्त ने जब तलीमता से भगवान की स्तूति में भाव-विभोर हो गान गाए तो मंदिर के बंद दरवाजे अपने-आप ही खुल गए और भगवान ने भक्त को दर्शन दिए। इसके बाद से वागड़ क्षेत्र में रहने वाले नागर-ब्राहम्ण समाज के लोग रामनवमीं पर्व भीलूड़ा आकर मनाने लगे। 

मंदिर के चारो ओर परकोटा बना हुआ है। मंदिर का स्थापत्य सादा है। पूर्वान्मुखी रघुनाथजी के मंदिर का मण्डप 18 छोटे-छोटे खंभों पर टिका है। इसके शिखर में छोटे-छोटे अनेक शिखर है। मुख्य शिखर पर आमलक बना उस पर कलश स्थापित किया गया है। मण्डप की छत पर गोल गुम्बद बना है उस पर कमलाकार का आमलक बना छोटा कलश स्थापित किया गया है। यहाँ के खम्भे सादे है। प्रवेश द्वार भी सादा ही है। परकोटे के प्रवेश द्वार पर हनुमान व गणेश की देवरिया है। मूल मंदिर की दायीं तथा बायीं ओर सूर्य भगवान, शीतला माता की छोटी देवरियां है। परकोटे के भीतर शिवजी का भी भव्य मंदिर है। मंदिर की अपनी सराय है जहां बाहर से आने वाले श्रद्धालु ठहरते हैं। परकोटे से बाहर एक कुआं तथा विशाल बड़ का पेड़ है जो इस मंदिर के पौराणिकता को दर्शाते हैं।

गर्भगृह के प्रवेश द्वार में चांदी से मण्डित किवाड़ लगे हैं। इन किवाड़ों पर सम्पूर्ण रामायण चित्रित है। चांदी पर की गई इन चित्रों की नक्काशीयुक्त कलाकृति आकर्षक है। चांदी के इन किवाड़ों को सन् 1947 में सागवाड़ा के शंकर जोइताराम पंचाल ने बनाया था। शंकर पंचाल ने इन दोनो किवाड़ो पर राम दरबार, भगवान राम की शिशु लीलाएं, ताड़का वध, सीता स्वयंवर, राम-विवाह, पंचवटी-सीताहरण, बाली सुग्रीवयुद्ध, हनुमान लंका गमन, अशोक वाटिका मे सीता, सेतु बांधना, लंका दहन, रावण की सभा में अंगद तथा राम-रावण युद्ध के दृश्यों को बहुत ही खूबी के साथ उत्कीर्ण किया है। चांदी पर किया गया यह दृश्यांकन दृश्यकला का अद्भूत नमूना है।

श्री रघुनाथजी के दर पर रामनवमीं का महापर्व

Shri Raghunathji Mandir Bhiluda, the holy place of faith of the people

श्री रघुनाथ जी के दर पर रामनवमीं महापर्व के रूप में मनाई जाती है। इसके साथ ही कृष्ण भगवान की झलक भी इसमें होने के कारण जन्माष्टमीं भी इसी धूम-धाम से मनाई जाती है। इस दिन भगवान के हाथों में जब बासूंरी होती है तो लगता ही नहीं कि ये विग्रह भगवान राम का है. इस पावन धाम के बारे में कहा जाता है कि वो पावन धाम है जहां भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। विष्णु पंचायतन मंदिर होने के कारण मंदिर के विशाल परिसर में गणेश जी, हनुमान जी, सूर्य भगवान, विष्णु जी के साथ-साथ अन्य देवता भी विराजित हैं। यही कारण है कि मंदिर में हर त्योहार एक विशेष पर्व का रूप ले लेता है और उस दिन मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया जाता है। श्री रघुनाथ जी को सातों दिन अलग-अलग भोग लगाया जाता है. कभी ये भोग खिचड़ी के रूप में होता है तो कभी पकवान भगवान को अर्पित किए जाते हैं। सुबह जहां राजभोग भगवान को लगाते हैं तो वहीं शयन के समय भगवान को दूध का भोग लगाया जाता है। 

रक्षाबंधन पर्व पर प्राचीन विधी-विधान से हरिया खेला जाता है। इस खेल के जरिए जहां आगामी मौसम का आंकलन कर ग्रामीण भविष्य की योजनाएं तैयार करते हैं, वहीं ये खेल आपसी समरसता और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। मंदिर की समस्त गतिविधियां यानि भगवान को भोग, आरती, भक्तों के लिए जरूरी सुविधाओं का प्रबंध डूंगरपुर नरेश द्वारा स्थापित लक्ष्मण देवस्थान निधी द्वारा किया जाता है। ट्रस्ट की पुख्ता व्यवस्थाओं का ही नतीजा है कि मंदिर में आने वाले हर वर्ग के श्रद्धालु चाहे वो बच्चे हों या बुजुर्ग, पुरुष हों या नारी, हर भक्त भगवान के दर्शन निर्विघ्न कर सकता है। 

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