बांसवाड़ा जिले में मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में नवरात्रि पर 1 लाख से ज्यादा भक्त दर्शन करने आते है, मां दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में देती हैं दर्शन

त्रिपुरा सुंदरी में 500 साल से जल रही अखंड ज्योत

बांसवाड़ा के त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की अखंड ज्योत करीब 500 साल से जल रही है। वर्तमान में सेवक शाकद्विपीय ब्राह्मण यहां पर सेवा पूजा करते है। देश की आजादी से पहले इस मंदिर में राजपरिवार की और से पूजन सामग्री भिजवाई जाती थी। वर्तमान पुजारी दीपक शर्मा ने बताया की उनके परिवार की 7 वी पीढ़ी यहां पर पूजा कर रही हैं। ये मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन है। नवरात्रि के समय में यहां पर काफी चहल पहल रहती है। मंदिर सुबह 6 बजे से 12 बजे, शाम 4 से 8 बजे तक खुला रहता है।

मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर

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बांसवाड़ा: जहां मां दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में देती हैं दर्शन

बांसवाड़ा का त्रिपुरा सुंदरी मंदिर जो 52 शक्ति पीठ में से एक है। यहां प्रतिमा को लेकर दावा किया जाता है कि सुबह, दोपहर और शाम को प्रतिमा के अलग-अलग रूप में दर्शन होते हैं, इसलिए त्रिपुरा सुंदरी कहा जाता है।

पंडित निकुंज मोहन पण्ड्या ने बताया कि सुबह में मां कुमारिका, दोपहर में यौवना और शाम में प्रौढ़ रूप में दर्शन होते हैं। ये भी कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन किले हुआ करते थे, शक्ति पुरी, शिव पुरी और विष्णु पुरी और इन्हीं तीन पुरियों के कारण भी नाम त्रिपुरा सुंदरी पड़ा।

यहां अठारह भुजाओं वाली है मूर्ति

बांसवाड़ा जिले से करीब 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वतामाला के बीच माता त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर है। मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश यानी अठारह भुजाओं वाली है। मूर्ति में माता दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिकृतियां अंकित हैं। मां सिंह, मयूर और कमल आसन पर विराजमान हैं।

ऐसा भी दावा किया जाता है कि एकमात्र इकलौता सिद्ध शक्ति पीठ है, जिसमें मां की सिंह सवारी उत्तर मुखी यानी उल्टे हाथ की तरफ है बाकि मंदिरों में ये दक्षिण मुखी यानी सीधे हाथ की तरफ होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वामांग सिंह पर मां त्रिपुरा विराजित हाेने पर उन्हें महालक्ष्मी के रूप में और सिंह काे कुबेर रूप में साक्षात विद्यमान माना जाता है। इसलिए मां त्रिपुरा सुंदरी के कमल के आसन के नीचे श्री यंत्र है।

मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर
इसलिए भी अनूठा मंदिर

आयुध श्रीयंत्र के आसन पर विराजित होने की वजह से मां लक्ष्मी के स्वरूप में भी आराधना होती है। हर भुजा में अक्षमाला, कमल, बाण, खड़ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शंख, घंटा, पाश, शक्ति, दंड, चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र और कमंडल जैसे आयुध (हथियार) भी हैं। देश में यह मंदिर अनूठा है, जहां प्रत्येक शिला (पत्थर) को हवन-पूजन कर प्रतिष्ठित किया है।

मंदिर में 2224 शिलाएं हैं। मंदिर में त्रिपुरा सुंदरी की मूल प्रतिमा के चारों ओर कुल 8 प्रतिमाएं, 5 स्वर्ण शिखर, 1 ध्वजदंड और शुकनाथ की प्रतिष्ठित प्रतिमा है। देवी के आसन के नीचे चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र बना है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व भी है। इस कारण दीपावली पर देवी की विशेष पूजा होती है।

नवरात्रि में एक लाख भक्त करेंगे दर्शन

महामंत्री नटवरलाल पंचाल ने बताया कि 15 अक्टूबर रविवार को नवरात्रि के अवसर पर दोपहर 12.1 से 12.45 के बीच घट स्थापना होगी। आरती 7 दिन सुबह 7 बजे होगी और अष्टमी को सुबह 5 बजे होगी। हर दिन 20 हजार श्रद्धालु और अष्टमी को 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।

पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि मां का हर 8 दिन अलग अलग शृंगार होगा। इसमें रविवार को पंचरंगी, सोमवार को सफ़ेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को केसरिया, शनिवार को नीला शृंगार होगा।

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