गहलोत-पायलट की सियासी एकता के बाद क्या BJP बदलेगी रणनीति?



राजस्थान की सियासत में हाल ही में कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की मुलाकात ने प्रदेश के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। यह मुलाकात 7 जून 2025 को गहलोत के सिविल लाइंस स्थित आवास पर हुई, जो तकरीबन दो घंटे तक चली।

फौरी तौर पर तो इसे राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के स्मृति समारोह के निमंत्रण के संदर्भ में देखा जा रहा है। हालांकि, इस मुलाकात को महज औपचारिकता मानना भूल होगी, क्योंकि इसके बाद राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी रणनीति में बड़े बदलाव की तैयारी में जुट गई है।

इस मुलाकात ने BJP के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, खासकर जातिगत समीकरण और सोशल इंजीनियरिंग के मोर्चे पर। आगामी विधानसभा उपचुनावों और पंचायती राज निकाय चुनावों को देखते हुए BJP अब एक नया सियासी मास्टर प्लान तैयार कर सकती है।

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गहलोत-पायलट की मुलाकात: सियासी चाल?

दरअसल, पिछले कई वर्षों से राजस्थान कांग्रेस में गहलोत और पायलट के बीच खींचतान किसी से छिपी नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों के बीच तनातनी शुरू हुई, जो 2020 में पायलट की बगावत के साथ चरम पर पहुंची। उस समय पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था।

इसके बाद 2022 में गहलोत द्वारा पायलट को ‘गद्दार’ कहने और 2023 में पायलट की जनसंघर्ष यात्रा ने दोनों के बीच की खाई को और गहरा कर दिया। लेकिन हाल की मुलाकात ने संकेत दिए हैं कि कांग्रेस अपने आंतरिक मतभेदों को सुलझाने की दिशा में बढ़ रही है।

सचिन पायलट ने गहलोत को राजेश पायलट की पुण्यतिथि के लिए दौसा में आयोजित होने वाले समारोह में आमंत्रित किया, और गहलोत ने इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट भी साझा की। इस मुलाकात को कांग्रेस की एकता के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है, जो BJP के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। राजस्थान से जुड़े सियासी जानकार दावा कर रहे हैं कि यह एकता भावी उपचुनावों और निकाय चुनावों में कांग्रेस को मजबूती दे सकती है।

क्या BJP को रणनीति में बदलाव की जरूरत?

बताते चलें कि राजस्थान में BJP वर्तमान में भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में सरकार चला रही है। 2023 के विधानसभा चुनावों में BJP ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया, लेकिन गहलोत-पायलट की एकता के संकेतों ने पार्टी को सतर्क कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि BJP को अब अपनी रणनीति में कई स्तरों पर बदलाव कर सकती है।

पहला- संगठनात्मक स्तर पर पार्टी को अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को एकजुट रखना होगा, ताकि कांग्रेस की एकता का मुकाबला किया जा सके। दूसरा, BJP को उन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी, जहां कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग प्रभावी हो सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस की ये एकता अगर लंबे समय तक बरकरार रहती है तो इसका सीधा असर मूल ओबीसी, जाट, गुर्जर, माली और दलित वोटरों पर पड़ सकता है, क्योंकि गहलोत-पायलट के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जाट समुदाय में मजबूत पकड़ रखते हैं और टीकाराम जूली दलित वोटरों के बीच लोकप्रिय हैं।

जातिगत समीकरण- BJP के सामने चुनौती?

गौरतलब है कि राजस्थान की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। जाट, गुर्जर, राजपूत, दलित, और मीणा समुदायों का वोट किसी भी पार्टी की जीत-हार तय करता है। गहलोत-पायलट की मुलाकात के बाद कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग ने BJP के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। सचिन पायलट का गुर्जर समुदाय में प्रभाव और गहलोत की OBC और अन्य पिछड़े वर्गों में पकड़ BJP के लिए चिंता का विषय है।

मालूम हो कि 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने गुर्जर, माली, जाट और दलित वोटों के समीकरण के दम पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 2023 में BJP ने इन जातियों के वोटों में सेंध लगाने में सफलता हासिल की थी। लेकिन अब कांग्रेस की एकता और गहलतो-पायलट के साथ-साथ डोटासरा-जूली जैसे नेताओं की लोकप्रियता BJP के लिए चुनौती बन सकती है। BJP अब दलित और गुर्जर वोटरों को लुभाने के लिए नए चेहरों को सामने ला सकती है।

BJP की सोशल इंजीनियरिंग- क्या है प्लान?

विदित हो कि BJP अपनी सोशल इंजीनियरिंग के लिए जानी जाती है। क्योंकि भाजपा को RSS का पर्दे के पीछे से पूरा समर्थन मिलता रहा है और RSS सभी जातियों में गांवों के स्तर तक काम करता है।

इससे पहले 2023 के चुनावों में पार्टी ने भजनलाल शर्मा जैसे ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री बनाकर एक नया प्रयोग किया, जो अब तक तो सफल माना जा रहा है। लेकिन अब गहलोत-पायलट की मुलाकात के बाद BJP अब अपनी सोशल इंजीनियरिंग को और मजबूत कर सकती है। इसके लिए पार्टी ये कदम उठा सकती है।

गुर्जर समुदाय को साधने की कोशिश : सचिन पायलट के प्रभाव को कम करने के लिए BJP अपने गुर्जर नेताओं, जैसे कि अल्का गुर्जर, सुखबीर सिंह जौनापुरिया, विजय बैंसला की नाराजगी दूर करने के साथ अन्य चेहरों को आगे कर सकती है। साथ ही गुर्जर बाहुल इलाकों में विकास योजनाओं पर जोर दिया जा सकता है।

दलित वोटरों पर फोकस : टीकाराम जूली की लोकप्रियता को देखते हुए BJP को दलित समुदाय के लिए विशेष योजनाएं और नेतृत्व को बढ़ावा देना होगा। दलित नेताओं को संगठन और सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं।

जाट समुदाय की एकजुटता : जाट वोटरों को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए BJP को पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा, केन्द्रीय मंत्री भागीरथ चौधरी, पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी और अन्य जाट नेताओं के जरिए सक्रियता बढ़ानी होगी।

युवा और महिला वोटरों को लुभाना : भाजपा को युवा और महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए नई नीतियां और प्रचार अभियान शुरू करने होंगे, क्योंकि पायलट की युवा छवि और गहलोत की कल्याणकारी योजनाएं इन वर्गों को प्रभावित कर सकती हैं।

भविष्य में BJP की सियासी राह

संगठनात्मक मजबूती : BJP अपने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के साथ, स्थानीय मुद्दों पर आक्रामक प्रचार कर सकती है।

विकास का एजेंडा : भजनलाल सरकार के विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं के जरिए जनता का विश्वास जीतने के लिए नया प्लान तैयार हो सकता है।

विपक्ष पर हमला : BJP कांग्रेस के आंतरिक मतभेदों को उजागर करते हुए यह साबित करने की कोशिश करेगी कि गहलोत-पायलट की एकता केवल दिखावा है।

गौरतलब है कि गहलोत – पायलट की मुलाकात ने राजस्थान की सियासत को नया मोड़ दिया है। कांग्रेस की एकता के संकेतों ने BJP को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। जातिगत समीकरणों और सोशल इंजीनियरिंग के मोर्चे पर BJP को न केवल कांग्रेस की चुनौती का सामना करना होगा, बल्कि अपनी सियासी जमीन को भी बचाना होगा। आगामी उपचुनाव और निकाय चुनाव इस नए सियासी मास्टर प्लान की पहली परीक्षा होंगे।

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