सागवाड़ा। नगर के आसपुर मार्ग लोहारिया तालाब के सामने स्थित कान्हडदास धाम बडा रामद्वारा में जुलाई माह में चातुर्मास करने आ रहे रामस्नेही संत तिलकराम ने नगर प्रवास के दौरान कहा कि पक्षियों के पंख होने से वे सही दिशा तय करते हैं लेकिन बिना पंखों का मन जब भटक जाता है तो भक्ति मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।
संत ने कहा हमें हमेशा संतों के संग रहना चाहिए संतों के चरण पूजे जाते हैं एवं उनके शब्दों से हमारा कल्याण होता है। आजकल लोग प्रकृति का ध्यान नहीं रखते हैं , इससे छेड़छाड़ करने पर मनुष्य दुखी हो जाता है। हमें प्रकृति की गोद में पलने वाले समस्त जीव-जन्तु, पादप-वृक्ष, वनस्पतियाँ तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव भी इस पृथ्वी के जैविक ताने-बाने के अविभाज्य अंग हैं। इन सभी के अस्तित्व, संतुलन और पारस्परिक सहयोग से ही ‘जैव विविधताÓ की समृद्ध धारा प्रवाहित होती है।
जैव विविधता का आशय केवल विभिन्न जीवों की गणना भर नहीं, अपितु पृथ्वी पर जीवन की समग्रता का संरक्षण, उसकी स्थिरता एवं निरंतरता को सुनिश्चित करना है। भौतिकवादी युग में मनुष्य अपनी स्वार्थपरक इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रकृति का अत्यधिक दोहन कर रहा है। वनों की अंधाधुंध कटाई, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण के बढ़ते स्तर ने जैव विविधता के समक्ष गहन संकट खड़ा कर दिया है। अनेक वन्य जीवों की प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं, और अनेक विलुप्ति की कगार पर हैं। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय असंतुलन की जननी है, बल्कि भविष्य की मानव सभ्यता के लिए एक गम्भीर चुनौती भी है।
संत ने कहा हमें यह समझना आवश्यक है कि महासागर, नदियाँ, पर्वत, वन, मरुस्थल, आकाश—प्रकृति के ये सभी घटक परस्पर जुड़े हुए हैं। इन सभी तंत्रों में पाए जाने वाले जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ अपने-अपने स्तर पर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में योगदान देते हैं। जैव विविधता का संरक्षण केवल एक पर्यावरणीय लक्ष्य नहीं, बल्कि मानव जीवन की सुरक्षा, स्वास्थ्य, आहार, जलवायु, और सांस्कृतिक अस्तित्व से भी सीधे सम्बन्धित है। भारत की ऋषि-परम्परा ने प्राचीन काल से ही प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की भावना का पालन किया है। हमारे वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों में पर्यावरण के संरक्षण को अत्यंत महत्व दिया गया है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद की ऋचाओं में धरती, जल, वायु, अग्नि तथा आकाश जैसे तत्वों को ‘देवताÓ के रूप में पूजित किया गया है। यह दर्शाता है कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, अपितु साधना का माध्यम और शक्ति का स्रोत माना। संत ने बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने प्रकृति को अपनी ही विभूति बताते हुए उसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं — जैसे गौचारण, मृदा भक्षण, गोवर्धन पूजा आदि — में जैव विविधता के संरक्षण एवं संवर्धन का गूढ़ संदेश निहित है।
जब वैश्विक स्तर पर जैव विविधता दिवस मनाया जा रहा है, यह आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक और वैदिक दृष्टि से प्रेरणा लेकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय हों। पृथ्वी पर जीवन की विविधता ही इसकी सुंदरता और स्थिरता का मूल आधार है। मानव का धर्म है कि वह जैव विविधता की रक्षा करते हुए, सभी जीवों के सह-अस्तित्व के आदर्श को स्वीकार करें। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी प्रकृति को, और यही मार्ग है समृद्ध मानवता का।
प्रवक्ता बलदेव सोमपुरा ने बताया कि संत प्रसाद दामोदर दलाल कि तरफ रहा। 3 जून मंगलवार को अहमदाबाद से रामस्नेही संत कीमतराम अपने बाल संत के साथ रामद्वारा में पधारेंगे, दोनों संतो के 5 जून तक रहने की संभावना है। इस अवसर पर कल्पेश शर्मा ,सुधीर वाडेल ,अनिल वाडेल ,मयंक दोशी, अशोक शर्मा ,अशोक भावसार, हेमंत सोमपुरा, हरीश गुप्ता, विष्णु दोसी, जैविक सोमपुरा सहित रामस्नेही भक्त मौजूद रहे।