बाप ने फिर लहराया परचम, चौरासी जीता, अब नजर पंचायतों पर

– उपचुनाव में मुख्यमंत्री के सामने फ़ेल हुए भाजपा के आदिवासी नेता!

चौरासी विधानसभा उपचुनाव में बीएपी प्रत्याशी अनिल कटारा ने 23,842 वोटों से जीत दर्ज की

चंद्रेश व्यास। सागवाडा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिये वागड़ में निराशा हाथ लगी। भाजपा के आदिवासी नेता चौरासी की सीट मुख्यमंत्री की झोली में डालने में नाकामयाब साबित हुए।

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चौरासी विधानसभा सीट पर एक बार फिर बाप ने जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया कि आदिवासी वोट बैंक पर अब भी उनका प्रभाव बना हुआ है। डूंगरपुर के चौरासी विधानसभा उपचुनाव में बीएपी प्रत्याशी अनिल कटारा ने 23842 वोटों से जीत दर्ज की है। बीएपी प्रत्याशी अनिल कटारा को 88389 मत मिले। वहीं भाजपा के कारीलाल को 64547 मत और कांग्रेस के महेश रोत को 15860 मत मिले।

हालाँकि बाप के लिए भी यह सोचने का विषय होगा कि पहले से इस सीट पर जीत का मार्जिन कम हुआ है। सलूंबर विधानसभा क्षेत्र के आखिरी राउंड में बाजी पलट गई और भाजपा की शांता मीना ने जीत दर्ज की। शांता ने भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) प्रत्याशी जितेश कुमार कटारा को शिकस्त दी है। इधर, वागड़ में आदिवासी वोट पर बाप के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को आदिवासी वोट बैंक साधने के लिए नई की रणनीति बनानी होगी।

चौरासी की जीत के बाद अब बाप की नज़रें पंचायतराज चुनाव पर होंगी। राज्य में भाजपा की सरकार है ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए यह उपचुनाव जीतना ज़रूरी था। भाजपा से जहां वर्तमान TAD मंत्री बाबूलाल खराडी, पूर्व मंत्री महेंद्र जीत सिंह मालवीय, कनकमल कटारा, सुशील कटारा, राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, विधायक शंकरलाल डेचा, पूर्व विधायक अनिता कटारा जैसे बड़े आदिवासी नेता चुनावी मैदान में डटे हुए है। वहीं बाप के लिये सांसद राजकुमार रोत मोर्चा सँभाले हुए है।

भाजपा की इतनी बड़ी टीम होने के बाद भी जीत बाप की हुई। चौरासी विधानसभा में राजकुमार रोत के विधायक से सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई थी। इस सीट पर लगातार 2 बार से बीटीपी और फिर बीएपी से राजकुमार रोत चुनाव जीते। इससे पहले भाजपा के सुशील कटारा विधायक थे। इस सीट पर 1 लाख 30 हजार 647 पुरुष वोटर हैं, जिनमें से 97 हजार 212 पुरुष मतदाओं ने वोट डाला। वहीं 1 लाख 24 हजार 727 महिला वोटर्स में 92 हजार 645 महिलाओं ने मतदान किया। एक ट्रांसजेंडर ने भी अपने मत का प्रयोग किया।

अन्य सीटों के परिणाम
– सलूंबर विधानसभा क्षेत्र के आखिरी राउंड में बाजी पलट गई और भाजपा की शांता मीना ने जीत दर्ज की।

– झुंझुनूं सीट कांग्रेस हार गई है। 21 साल बाद पार्टी ने यहां से हारी। यह झुंझुनूं के इतिहास की सबसे बड़ी जीत है।

– दौसा से मंत्री किरोड़ीलाल मीणा को तगड़ा झटका लगा है। यहां से उनके भाई जगमोहन मीणा हार गए हैं।

– देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मार ली है।

– कांग्रेस चौरासी और सलूंबर में तीसरें स्थान पर

चौरासी विधानसभा से जीत दर्ज करने के बाद अनिल कटारा ने कहा कि वे जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे। लोगों ने उन पर जो भरोसा जताया है, वे उसे पूरा करेंगे। लोगों से उन्होंने जो भी वादे किए हैं, रोजगार, शिक्षा को लेकर काम करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार ने पूरा तंत्र यहां लगा दिया। लोगों के भरोसे पर खरा उतरेंगे।

राजकुमार रोत का भी दिखा जलवा

दरअसल इस सीट पर पिछले कई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला देखा गया है, लेकिन साल 2018 में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने चुनावी मैदान में एंट्री मारी और चौरासी विधानसभा में राजनीतिक विशेषज्ञों के गणित को बिगाड़ दिया। 2018 के चुनाव में बीटीपी पार्टी से राजकुमार रोत विधायक बने। उन्होंने 12 हजार से ज्यादा वोटों की लीड लेकर भाजपा के सुशील कटारा को हराया था।

वहीं साल 2023 में नई पार्टी बीएपी से राजकुमार रोत फिर मैदान में उतरे और बड़ी जीत दर्ज की। इस चुनाव में भी उन्होंने 69 हजार से ज्यादा वोटों की लीड लेते हुए भाजपा के सुशील कटारा को शिकस्त दी थी। चौरासी विधानसभा को राजकुमार रोत का गढ़ माना जाता है। उनके सांसद बनने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था। ऐसे में इस सीट के नतीजों का भारत आदिवासी पार्टी और सांसद राजकुमार रोत के राजनीतिक भविष्य पर खास असर पड़ने वाला था। इसलिए रोत भी चुनावी मैदान में डटे रहे और आखिरकार अपने गढ़ को बचा लिया।

कांग्रेस-बीएपी के बीच नहीं हुआ गठबंधन

लोकसभा चुनाव में बीएपी और कांग्रेस गठबंधन कर मैदान में उतरी थी, लेकिन उपचुनाव में दोनों ने पार्टियों ने स्वतंत्र चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। दरअसल सांसद राजकुमार रोत ने पूर्व में कहा था कि कांग्रेस चौरासी और सलूंबर में अपने प्रत्याशी नहीं उतारती है तो बीएपी देवली-उनियारा में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। हालांकि दोनों पार्टियों के बीच बात नहीं बनी थी। ऐसे में बीएपी परंपरागत वोट बैंक पर पकड़ और अधिक मजबूत करने में काफी पहले से जुट गई थी।

गलत साबित हुआ भाजपा का फैसला

चौरासी विधानसभा सीट पर भाजपा 1990 से ही सुशील कटारा या फिर उनके परिवार को टिकट दे रही थी। 2003 और 2013 के चुनाव में सुशील कटारा ने जीत हासिल की थी। हालांकि बीते दो चुनावों में कटारा जीत तो हासिल नहीं कर पाए, लेकिन दोनों चुनावों में वे दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भी उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा सुशील कटारा को टिकट दे सकती है, लेकिन बीजेपी ने कारीलाल ननोमा को चुनावी मैदान में उतार दिया।

ननोमा सीमलवाड़ा पंचायत समिति के प्रधान हैं। कारीलाल सादड़िया पंचायत के पूर्व सरपंच रह चुके हैं। अभी उनकी पुत्रवधू रेखा सरपंच हैं। इनकी पत्नी हाकली देवी भी पूर्व में सरपंच रह चुकी हैं, लेकिन बीएपी के नए चेहरे के सामने ननोमा का अनुभव नहीं चला। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर भाजपा सुशील कटारा पर एक बार और विश्वास जताती, तो शायद चुनाव और भी दिलचस्प हो सकता था।

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