ठाकरड़ा में स्थित प्राचीन सिद्धनाथ महादेव मंदिर, Siddhanath Mahadev Mandir in Thakrada

Siddhanath Mahadev Mandir in Thakrada

सिद्धनाथ महादेव :- डूंगरपुर मार्ग पर सागवाड़ा से करीब 13 किमी दूर ग्राम पंचायत ठाकरड़ा में स्थित प्राचीन सिद्धनाथ महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। गोमती नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में सोमवार, एकादशी, पूर्णिमा और श्रावण मास में दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ती है। मंदिर में हर साल शिवरात्रि और दीपावली के समय बड़े से मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर का निर्माण मेघ-बड़नागरा जाति के नागर ब्राह्मण ने करवाया था।

मंदिर का विस्तार करीबन 90 बिगहा तक फैला हुआ है। पास  के विस्तार में विभिन्न प्रकार के 200 से 300 वृक्षों को लगाकर वृक्षारोपण किया गया है। 

Siddhanath Mahadev Mandir in Thakrada

मंदिर का इतिहास

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मंदिर का इतिहास करीब 580 वर्ष पुराना है, सिद्धनाथ महादेव मंदिर का निर्माण राजा गोहील के वंशज खुमाण वंशी प्रतापसिंह के पुत्र महारावल गोपीनाथ के शासन काल में कराया गया था। मंदिर के निर्माण में मेघ-बड़नगरा जाति के नागर ब्राह्मण का बड़ा योगदान रहा है
विशाल शिवालय में भगवान सिद्धनाथ का एक विशाल स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, यह शिवलिंग रुद्राक्ष जैसा प्रतीत होता है। शिवलिंग सहित ब्रह्माजी, रिद्धि-सिद्धि गणेश, शंकर-पार्वती और दो नंदी प्रतिमाएं रखी गई हैं।  श्रद्धालु मंदिर को सिद्धेश्वर, काशी विश्वनाथ और हेजनाथ महादेव के नाम से भी जानते हैं। सिद्धनाथ मंदिर में मां पार्वती की चार कलात्मक प्रतिमाएं हैं। पास के देवालय में भगवान लक्ष्मीनारायण की विशाल प्रतिमा है। विशेष बात यह है कि शिवालय के पास कुंड में पानी कभी नहीं सूखता है, अर्थात कुंड में बारह महीने पानी भरा रहता है। पौराणिक कहानी के अनुसार ठाकरड़ा गांव के बुजुर्गों को कहना है कि, मुगल सम्राटों के आक्रमण के समय काशी में एक मंदिर से शिवलिंग गायब हो जाने और जलधारी वहीं रह जाने की बात प्रचलित है। 

 

Siddhanath Mahadev Mandir in Thakrada

सिद्धनाथ महादेव से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ 

ठाकरड़ा गांव के पश्चिमी छोर से एक टेकरी पर गाय के दूध से अभिषेक कर दिया जाता था। लेकिन वहाँ शिवलिंग की जलाधारी नहीं थी। गांव के ब्राह्मण को भगवान शिव ने स्वप्न में काशी विश्वनाथ होने और गौमती के तट पर प्रकट होने की जानकारी दी और कहा कि जलाधारी काशी से ले आओ। तब यहां से भट्ट परिवार के सदस्य जलाधारी लेने काशी पहुंचे। स्वप्न में भगवान शिव द्वारा ब्राह्मण को पतली लकड़ी के बीच में जलाधारी डालकर लाने को कहा। ब्राह्मण और उनके सहयोगी जलाधारी को लकड़ी में पिरोकर कंधे पर उठा कर लाए जो आज भी मंदिर में स्थापित है।

सिद्धनाथ महादेव मंदिर की कीर्ति बढ़ऩे से आसपास के जिलों के अलावा महाराष्ट्र से भी यहां दर्शनार्थी आने लगे। वर्ष 2013 में मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य शुरु किया गया था। मंदिर में प्रतिदिन भण्डारी द्वारा भोजन बनाकर भोग लगाया जाता है। 
भगवान सिद्धनाथ का एक विशाल स्वयंभू रूद्राक्ष शिवलिंग स्थापित है। श्रद्धालुओं का मानना है कि नेपाल के पशुपतिनाथ के बाद रूद्राक्ष का यह दूसरा स्वयंभू शिवलिंग हैं। श्रृद्धालु इसे सिद्धेश्वर, काशी विश्वनाथ व हेजनाथ महादेव भी कहते है।

 

Siddhanath Mahadev Mandir in Thakrada

रूद्राक्ष जैसा है शिवलिंग

मंदिर में ब्रह्माजी, रिद्धि-सिद्धि गणेश, शंकर पार्वती, दो नंदी प्रतिमाओं सहित गर्भगृह में भगवान सिद्धनाथ का स्वयंभू शिवलिंग है जो रूद्राक्ष जैसा प्रतीत होता है। यहां पर मां पार्वती की चार कलात्मक प्रतिमाएं है। पास के देवालय में भगवान लक्ष्मीनारायण की विशाल प्रतिमा है। शिवालय के पास एक कुंड में बारह मास पानी रहता है।

प्राचीन मंदिर फोटो

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