Dawoodi Bohra community : आज के दौर में मोबाइल फोन बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा बन गए हैं, लेकिन इसके अत्यधिक उपयोग से उनकी सेहत और मानसिक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (ADHD) जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
बच्चे अतिचंचल, जिद्दी और गुस्सैल हो रहे हैं। उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जैसे मोटापा, आंखों की कमजोरी और आलस्य।
एक रिपोर्ट के अनुसार, दाउदी बोहरा समाज के 20-30% स्कूली बच्चों को चश्मा लग चुका है और 10-15% बच्चों में डिप्रेशन व एंग्जाइटी की समस्या पाई गई है। हिंसक गेम्स खेलने के कारण बच्चे आक्रामक और चिड़चिड़े हो रहे हैं। पोर्नोग्राफी और साइबर क्राइम जैसी समस्याएं भी अब कम उम्र में बढ़ती जा रही हैं।
बोहरा समाज की पहल:
इन चिंताओं के मद्देनजर, दाउदी बोहरा समाज ने बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने के लिए एक प्रभावी कदम उठाया है। समाज ने निर्णय लिया है कि 15 साल से कम उम्र के बच्चों को मोबाइल फोन नहीं दिए जाएंगे। यह प्रतिबंध सैयदना साहब के मार्गदर्शन में लगाया गया है, जिन्होंने अभिभावकों को बच्चों की सेहत और भविष्य को सुरक्षित रखने की सलाह दी है।
जागरूकता अभियान:
बोहरा समाज ने मस्जिदों और सामाजिक संगठनों के माध्यम से जागरूकता अभियान शुरू किया है।
- अभिभावकों और बच्चों को मोबाइल की लत के खतरों के बारे में जानकारी दी जा रही है।
- स्कूलों और सामुदायिक संगठनों के सहयोग से सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं।
- वरिष्ठ चिकित्सकों और मनोचिकित्सकों के परामर्श सत्र आयोजित हो रहे हैं।
- स्क्रीन टाइम के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चाएं की जा रही हैं।
सैयदना साहब का संदेश:
मुंबई में हाल ही में सैयदना साहब ने बच्चों के साथ बातचीत में उन्हें स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की सलाह दी। इस पहल का उद्देश्य बच्चों को न केवल मोबाइल की लत से बचाना है, बल्कि उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बेहतर बनाना है।
समाज के लिए प्रेरणा:
दाउदी बोहरा समाज का यह कदम अन्य समुदायों के लिए एक प्रेरणा है। यह पहल दिखाती है कि बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए सामूहिक प्रयासों की कितनी आवश्यकता है।
समाज को संदेश:
मोबाइल की लत से बच्चों का बचाव हर माता-पिता की जिम्मेदारी है। इस पहल से न केवल बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य सुरक्षित होगा, बल्कि वे समाज के जिम्मेदार सदस्य भी बनेंगे।
निष्कर्ष:
बच्चों को मोबाइल की लत से बचाने के लिए किए गए ये प्रयास न केवल उनके स्वास्थ्य को संरक्षित करेंगे, बल्कि उन्हें समाज का जिम्मेदार और स्वस्थ नागरिक बनने में भी मदद करेंगे।