सागवाड़ा। प्रभुदास रामद्वारा में दिव्य चातुर्मास के अंतर्गत रामस्नेही संप्रदाय मेडता के उत्तराधिकारी महंत रामनिवास शास्त्री ने कहा कि दुर्जन व्यक्ति के साथ रहने से दुर्जन व्यक्तित्व विकसित होगा। इसलिए दुर्जन का संग कभी भी मत करो। राम भगवान विभीषण को कहते हैं कि संग अच्छे सतगुरु संत से करो, दुर्जनों के संग से हमेशा हानि होनी है
शास्त्री ने कहा कि राम के नाम में सभी नाम समा जाते है नाम चतुर्भुज, पंचयुंग, कृति दो गुनी वसू भेखि। नाम चराचर जगत में तुलसी रामही देखि। जिसकी वाणी में रामनाम हैं उसका जीवन भवपार है। श्मशान की भस्मी भले राख हैं परन्तु इसमें रामनाम है तभी शंकर शरीर पर भस्म लगाते हैं। भगवान के नाम से हमारी शोभा होती हैं। ‘रामनाम के हीरे मोती मैं बिखराऊ’ लोग जैसे हीरे मोती के हार पहनते हैं संत लोग भगवन नाम की माला का हार धारण करते हुए अपने को निर्मल कर देते हैं।
उन्होंने बताया कि तुलसीदास लेखन में कहते हैं कि मेरे जैसा दुष्ट कोई नहीं है धर्म ही मनुष्य की विशेषता है, पशुता की तरह जीवन यापन कर मनुष्य मर जाता है। भजन का प्रभाव यही है कि अपनी वाणी को प्रभावित करे। भगवान निर्गुण है तो बार बार अवतार क्यों लेता है जिसपर उन्होंने कहा कि मनुष्यों के हितों अवतार लेना पड़ता है। भगवान राम गरीब नवाज हैं दीनबंधु है। प्रारंभ में पंडित विनोद त्रिवेदी के मंत्रोच्चार के बीच पोथी पूजन और आरती डूंगरपुर के भक्त सतीश भंडारी, वि_ल यादव, संत उदयराम एवं संत अमृतराम रहे।
तबला पर लोकेश इंदौर और ऑर्गन पर अशोक इंदौर से ध्वनि प्रसार यंत्र पर मंगेश भाटी, मंजीरे पर अभिनव मेड़ता ने संगत दी। इस दौरान रमाकांत भावसार, रुपनारायण, रमणलाल बनकोड़ा, गजेंद्रप्रसाद, लालशंकर भावसार, करुणा पंचाल, संगीता सोमपुरा, निरंजना भावसार, पिंकी भावसार, नयना सोमपुरा, मीना, कल्पना, जया, केतना सोमपुरा, राजेन्द्र प्रसाद भावसार, लोकेश सोमपुरा, प्रभाशंकर बरबुदनिया मौजूद रहे।