अच्छी बारिश और खुशहाली के लिए रोकड़िया गंडेरी गणपति मंदिर परिसर में अखंड घी धारा का हवन शुरू हुआ, नगरवासियों ने आहुतियां दी

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सागवाड़ा। नगर समेत वागड़ क्षेत्र में अच्छी बारिश और खुशहाली की कामना को लेकर सोमवार शाम से रोकड़िया गंडेरी गणपति मंदिर परिसर में अखंड घी धारा का हवन शुरू हुआ है।

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सागवाड़ा नगर में पिछले 700 सालों से चल रही परम्परा के अनुसार आयोजन शुरू हुआ। जिसमें मंदिर के सामने पंडित जयदेव शुक्ला, विनय शुक्ला और हेमंत शुक्ला के मंत्रोच्चार के साथ सिद्धि विनायक गणपति मंडल के अध्यक्ष और मुख्य यजमान नारायणलाल बनोत ने भगवान गणेशजी, नवग्रह और ब्रम्हाजी का पूजन किया। इसके बाद नगरपालिका अध्यक्ष नरेंद्र खोड़निया के सानिध्य में विधि विधान के साथ घी की आहुतियां समर्पित कर हवन प्रारम्भ हुआ।

गंडेरी गणपति भक्त मंडल के सदस्यों व नगरवासियों ने घी की आहुतियां समर्पित की। इसके बाद सामूहिक आरती हुई। इस अवसर पर पूर्व पालिका अध्यक्ष सत्यनारायण सोनी, सुधीर वाडेल, भंवरलाल शर्मा, अशोक भट्ट, मनोज जोशी, विनोद भावसार, सुरेंद्र शर्मा, अनिल वाड़ेल, बालमुकुंद शर्मा, रामलाल भोई, बाबूलाल सेवक, देवीलाल सोनी, दीपक सोनी, तुलसीराम सेवक समेत गंडेरी गणपति भक्त मंडल के सदस्य व नगर वासी मौजूद रहे।

कुंड पर तिपाही पर रखा घी का पात्र:

अखंड घृत धारा के यज्ञ के लिए गंडेरी गणपतिजी के सामने एक ऊंची तिपाही रखी गई है। इसके ऊपर कलश रख कर उसमें घी भरा जा रहा है। इसके नीचे ईंटों से हवनकुंड बनाया गया है। जिसमें शुद्ध देसी घी की अखंड धारा के रूप में घी हवनकुंड में गिरता है। क्रम नहीं टूटे, इसलिए गणपति मंडल के सदस्यों को देखरेख की जिम्मेदारी दी गई है।

आर्थिक सहयोग देते थे इसलिए नाम रोकड़िया गणपति:

किवदंती के अनुसार गंडेरी गणपतिजी जरूरतमंद को आर्थिक सहयोग मांगने पर रोकड़ा देते थे। इसलिए रोकड़िया गंडेरी गणपति मंदिर नाम पड़ा। लोग अपना काम हो जाने के बाद भगवान गणेश से लिया उधार वापस चुका देते थे। शहर के बुजुर्गों के अनुसार 700 साल पहले मंदिर बना था।

इतिहास के अनुसार महारावल सिंहलदेव के समय में इंडर, गुजरात के हुमड़ महाजन अपने पुरोहित खेडुआ ब्राह्मणों के साथ मालवा की तरफ जा रहे थे। सागड़ा घाटी में उन्होंने आराम करने के लिए पड़ाव डाला था। यहां मंदिर की स्थापना की थी। कालांतर में सागड़ा घाटी ही सागलपुर और वर्तमान में सागवाड़ा शहर के नाम से जाना जाता है।

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