जन्माष्टमी: सागवाड़ा में कान्जी महाराज को मथुरा से गोकुल ले जाने की परंपरा

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सागवाड़ा। जन्माष्टमी के दूसरे दिन कान्जी महाराज (बाल श्रीकृष्ण) को मथुरा से गोकुल ले जाने की अनुठी परंपरा सागवाड़ा शहर में वर्षो से चली आ रही है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के बाद अगले दिन नेमा महाजन समाज के तत्वावधान में नगर में ठाठ से ठाकुरजी की शोभायात्रा निकाली जाती है। रजत पालकी में विराजित भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप प्रतिमा को सिर पर धारण कर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नाचते गाते, उत्साह के साथ इस परंपरा को निभाया जाता है।

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जो नगर समेत आसपास क्षेत्र के लोगों के लिए आकर्षण रहता है। दूरदराज के लोग इस नजारे को देखने के लिए देर रात तक जमे रहते है। नेमा समाज समेत शहर के बड़े बुजुर्ग बताते है कि आज से करीब 293 वर्षो पूर्व संवत 1785 में सागवाड़ा में यह अनुठी परंपरा शुरू हुई थी, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी उसी उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल ले जाने की रस्म को सांकेतिक रूप से मनाया जाता है। धर्म शास्त्रों में उपलब्ध वर्णन और मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनके पिता वासुदेवजी द्वारा उन्हें मथुरा से गोकुल नंदबाबा के घर ले जाया गया था। इसी परंपरा को यहां के भक्तजन सांकेतिक रूप से वर्षों से पूरे उत्साह के साथ मनाते आ रहे है।

गंंडेरी मंदिर के पास श्रद्धालु कान्हा की पालकी सिर पर धारण करते हैं

भगवान कृष्ण को मथुरा से गोकुल ले जाने की सांकेतिक रस्म के तहत जन्माष्टमी के दूसरे दिन शाम को शहर में नेमा समाज की ओर से शोभायात्रा निकाली जाती है। जिसमें परंपरा के अनुसार पहले समाजजन रूप चतुर्भुज मंदिर में एकत्रित होते हैं। जहां भगवान का पूजन और आरती करते हैं।

उसके बाद समाजजन भगवान के पारंपरिक निवास बंशी महाराज या रामशंकरजी शर्मा के घर पर जाते है। (यहां बालकृष्ण की प्रतिमा का परंपरा से वर्षभर पूजन, एक एक साल बारी बारी से होता है) महाराज के निवास से श्रीकृष्ण भगवान के बाल स्वरूप प्रतिमा को चांदी की पालकी में विराजित कर भक्तजन पालकी अपने सिर पर धारण करते हैं।

जुलूस के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर धार्मिक धूनें बजाई जाती हैं। जुलूस के मांड़वी चौक स्थित गणडेरी गणपति मंदिर के सामने पहुंचने पर भगवान की पालकी सिर पर धारण कर श्रद्धालु काफी देर तक नाचते-गाते रहते हैं। श्रद्धालुओं में सिर पर पालकी धारण करने की होड़ लग जाती है। जिसके बाद मांड़वी चौक होते हुए जुलूस चारभुजाजी मंदिर पहुंचता है। इस बार भगवान की शोभायात्रा राजेश शर्मा के निवास से निकलेगी।

प्रतिमा को चुरा तो लिया, चोर जंगल में ही छोड़ गए

पहले हर साल भगवान की शोभा यात्रा एक ही घर से निकाली जाती थी, पर भगवान की प्रतिमा की चोरी होने के बाद हर साल प्रतिमा के निवास का स्थान बदलने की परंपरा बन गई। चोरों ने अपने स्वभाव के अनुसार भगवान की प्रतिमा को चुरा तो लिया, लेकिन बाद में उसे जंगल में ही छोड़ कर चले गए। प्रतिमा काफी समय तक जंगल में पड़ी रही, इसके बाद किसी वैष्णव को भगवान ने स्वप्र में प्रतिमा को यहां से लाने को कहा। जिसके बाद से हर वर्ष भगवान का निवास बदलने की परंपरा बन गई।

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