गोवाडी पंचायत में ज़मीन की बंदरबांट, भाजपा-कांग्रेस नेताओं की चुप्पी पर उठ रहे सवाल



करोड़ों रुपये की बहुमूल्य सरकारी ज़मीन को कथित तौर पर रसूखदारों को कोड़ियों के दाम पर पट्टों के माध्यम से दे दिया गया

संडे स्पेशल स्टोरी

सागवाड़ा। गोवाडी पंचायत में पंचायत भूमि के कथित आवंटन और बंदरबांट का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। करोड़ों रुपये की बहुमूल्य सरकारी ज़मीन को कथित तौर पर रसूखदारों को कोड़ियों के दाम पर पट्टों के माध्यम से दे दिया गया। सबसे हैरानी की बात यह है कि इस पूरे मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के स्थानीय नेताओं की चुप्पी चर्चा का विषय बनी हुई है।

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किस तरह से सत्ता के दलालों ने गोवाडी पंचायत की करोड़ों रुपये की भूमि अपने नाम कर ली। गोवाडी पंचायत की ज़मीन में हुई बंदरबाँट भ्रष्टाचार का एक बड़ा नमूना है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपने राजनीतिक रसूख़ का इस्तेमाल करते हुए पंचायत की भूमि बेच डाली। ग्रामीणों की शिकायत के बाद भी अधिकारियों ने इस पूरे मामले को दबाया। सत्ता परिवर्तन के साथ ही अब जब शिकायत उच्चाधिकारियों तक पहुँची तो एक बार फिर गोवाडी की फ़ाइलें अधिकारियों की टेबल पर दौड़ रही है।

एक ही दिन में 28 पट्टों का आवंटन किया गया, जिसकी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। वर्तमान में पंचायत समिति में भाजपा से ईश्वर सरपोटा प्रधान हैं और उनकी पत्नी पुष्पा गोवाडी की सरपंच हैं। ऐसे में अधिकारी भी कार्यवाही से बचते दिख रहे हैं। हाल ही में बाप विधायक पर रिश्वत लेने के आरोपों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रेस वार्ता कर एक-दूसरे पर तीखा हमला बोला था।

लेकिन गोवाडी जैसे करोड़ों की ज़मीन घोटाले पर दोनों दलों की चुप्पी से आम जनता हैरान है। जनता पूछ रही है कि क्या यह “ज़मीन के लिए गठबंधन” या “ठगबंधन” का मामला है। इस पूरे मामले में एक बात साफ़ हो गई कि ज़मीन मामले में भाजपा और कांग्रेस का गठबंधन मज़बूत है। हालाँकि यहां इस मामले में बाप पार्टी की चुप्पी भी भी गौर करने लायक़ है ।

आगे की राह – क्या होगा अब?

अब जब मामला फिर से उच्चाधिकारियों तक पहुंचा है, सवाल यह है कि क्या यह फाइल फिर ठंडे बस्ते में चली जाएगी या इस बार कार्रवाई होगी? जनता को पारदर्शिता चाहिए, जवाबदेही चाहिए – सिर्फ़ दिखावटी विरोध नहीं।

प्रशासन की भूमिका – निष्क्रियता या दबाव में काम?

ग्रामीणों की शिकायत के बावजूद कार्यवाही ना होना, अधिकारियों का फ़ाइल दबाना – यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि सत्ता के दबाव में काम करने की ओर संकेत करता है। यदि एनआरआई को पंचायत ज़मीन दी गई, तो क्या यह कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ?

सत्ता और रिश्तों का खेल

गोवाडी पंचायत में भाजपा से सरपंच और पंचायत समिति में प्रधान का संबंध, और कांग्रेस शासनकाल में शुरू हुई ज़मीन की रजिस्ट्रियाँ – यह सत्ता परिवर्तन के बावजूद जारी गठजोड़ की ओर इशारा करता है।क्या यह “ज़मीन के लिए गठबंधन” नहीं बल्कि “ठगबंधन” है? यह शब्द तीखा ज़रूर है, परंतु परिस्थिति की सच्चाई को बखूबी दर्शाता है।

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