सांसद राजकुमार रोत ने राणा पुंजा भील के इतिहास पर सवाल उठाने वाले लीगल नोटिस का दिया जवाब। उन्होंने कहां कि हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ देने वाले राणा पुंजा भील थे, जो मेरपुर के भीलवंशीय मुखिया थे।
सांसद रोत ने बताया कि यह ऐतिहासिक तथ्य न केवल लोककथाओं और भील समुदाय की परंपराओं में जीवित है, बल्कि इतिहासकारों ने भी इसे स्वीकारा है। रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद औझा की पुस्तक ‘‘उदयपुर राज्य का इतिहास’’ और राजस्थान की प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक ‘‘वीर विनोद’’ में भी इस बात का उल्लेख है।
सांसद रोतने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भी जिक्र किया, जिन्होंने 2023 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उदयपुर की सभा में राणा पुंजा भील को हल्दी घाटी युद्ध के नायक के रूप में याद किया था। उन्होंने यह भी बताया कि पानरवा के स्वर्गीय राणा पुंजा सिंह सौलंकी के बारे में उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की है और उनकी पहचान को लेकर क्षेत्र में किसी तरह का भ्रम नहीं है। सांसद ने कहा कि हल्दीघाटी युद्ध से जुड़ा मेवाड़ का राजचिन्ह, जिसमें एक तरफ महाराणा प्रताप और दूसरी और राणा पुंजा भील को दर्शाया गया है जो कि राजपूत और भील समुदाय के ऐतिहासिक गठजोड़ का प्रतीक है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में इतिहास के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना क्षेत्रीय सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। राणा पुंजा भील की जयंती और उनके योगदान को आदिवासी और राजपूत समाज के लोग मिलकर मनाते हैं, जो उनकी ऐतिहासिक भूमिका की सच्चाई को प्रमाणित करता है।
सांसद रोत ने अपने जवाब में कहा कि राणा पुंजा भील के अस्तित्व को नकारना पूरे देश के भील समुदाय का अपमान है। उन्होंने कहा कि राणा पुंजा भील का योगदान मेवाड़ के इतिहास में अमिट है और इसे किसी भी तरह से बदला नहीं जा सकता।