बांसवाड़ा लोकसभा चुनाव : बांसवाड़ा सीट पर इस बार बेहद रोचक मुकाबला है। यहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही कांग्रेस कैंडिडेट को वोट नहीं देने की अपील की थी। वजह यह रही कि यहां से कांग्रेस और बीएपी का गठबंधन हो गया। दोनों दलों ने संयुक्त उम्मीदवार राजकुमार रोत को मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार उम्मीदवार अरविंद डामोर ने नामांकन वापस लेने से इनकार कर दिया था।
कुछ महीने पहले बनी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के एक 31 साल के युवा राजकुमार राेत ने वागड़ की राजनीति के सबसे बड़े और 40 साल से सक्रिय राजनीति के सबसे अनुभवी चेहरे काे शिकस्त देकर राजनीति के इतिहास में नया अध्याय लिख दिया।
बांसवाड़ा में पहली बार साल 1952 में लोकसभा चुनाव हुए थे। जिसमें कांग्रेस के भीखाभाई चुने गए थे। उसके बाद साल 1957 में कांग्रेस ने भोगीलाल पाडिया, 1962 में रतनलाल, 1967 में हीरजी भाई और 1971 में हीरालाल डोडा को मैदान में उतारा। ये सभी चुनाव जीतते रहे, लेकिन 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के हीरा भाई ने कांग्रेस का हरा दिया। हालांकि 1980 में हुए अगले चुनाव में ही एक बार फिर से कांग्रेस के भीखाभाई ने यह सीट पार्टी की झोली में डाल दी। बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं।
साल 2019 का चुनाव परिणाम
पिछले चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो यहां बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी के कनकमल कटारा को 7,11,709 वोट मिले थे। तो वहीं, कांग्रेस के ताराचंद भगोरा को 4,06,245 वोट मिले थे। इसके अलावा बीटीपी के कांतिलाल रोत को 2,50,761 वोट मिले थे।
जिन्होंने वागड़ के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री रहे महेंद्रजीतसिंह मालवीय को 2 लाख 47 हजार 54 वोट से हरा दिया है। मालवीया को पहली बार इतनी बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। स्थिति ऐसी रही की मतगणना शुरू होने के पहले राउंड से ही मालवीय पीछे चलते रहे और अंत में राजकुमार रोत को करीब ढाई लाख वोट की बढ़त मिल गई।