सागवाड़ा । नकली उर्वरक से जुड़े मामलों का खुलासा होते ही इससे होने वाले नुकसानों की चर्चाएं बढ़ गई हैं। यूरिया चाहे असली हो या नकली नुकसान तो दोनों ही पहुंचा रहे हैं।
काश्तकारों के साथ बातचीत में यह बात भी सामने आई कि लगातार यूरिया का इस्तेमाल इंसानी के शरीर के साथ-साथ जमीन की सेहत को भी बिगाड़ रहा है। जिन खेतों में बरसों से यूरिया, डीएपी व अन्य केमिकल युक्त दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है, वहां जमीन अब सख्त हो गई है। इससे हर साल की कृषि की गुणवत्ता पर भी बड़ा असर पड़ा है।
विश्व पर्यावरण दिवस को लेकर‘’मेरा सागवाड़ा” से बातचीत में लोगो ने काश्तकारी का अनुभव साझा करते बताया कि गोबर की खाद के बड़े फायदे हैं, लेकिन जल्दी फसल उगाने के लालच में काश्तकारों ने यूरिया को अपना लिया। हर साल खेतों की मिट्टी में यूरिया के अंश जाने से केमिकल्स का असर जमीन पर भी पड़ा है।
अब किसानों की मजबूरी है कि फसल की ज्यादा पैदावार के लिए यूरिया का उपयोग खरीफ और रबी दोनों में कर रहे हैं। देशी खाद के प्रयोग से जल्दी और अपेक्षाकृत फसल की पैदावार नहीं मिलती।
यूरिया से था परहेज
बीस साल पहले तक खेतों में यूरिया का उपयोग ना के बराबर होता था। केवल देशी खाद से ही बुवाई होती थी। अब यूरिया व डीएपी के कारण फसलें जल्दी उठती हैं। 15-20 साल पहले केवल गोबर व देशी खाद ही काम में लेते थे। समझदार किसान यूरिया उपयोग से परहेज करते थे।
– प्रदीप भट्ट
अब खानपान बिगड़ा
पहले का खानपान अच्छा था ।पहले के जमाने में मिट्टी की हांडी में पानी से सब्जियां बना लेते थे। अब तो हर चीज में मिलावट है। खाद और बीज ही मिलावटी है तो बीमारियां तो बढ़ेंगी। हर चीज में मिलावट होने से लोग ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं।
-धीरज मेहता
काश्तकार जागरूक नहीं
किसान इतने जागरूक नहीं हैं, जो असली और नकली उर्वरक की पहचान कर सकें। बाजार में जो उर्वरक मिल जाता है उसे ही खरीद कर खेतों में डाल देते हैं। कई साल से लगातार खाद के इस्तेमाल से जमीन सख्त हो गई है। अब यूरिया के बगैर खेती करने की स्थितियां नहीं रही। देशी खाद जमीन को उपजाऊ करती है।
– नाथू पाटीदार