डूंगरपुर का 743वां स्थापना दिवस आज



डूंगरपुर। राजकीय संग्रालय में रखी छठीं शताब्दीं की पेंटिंग। डूंगरपुर का आज 743वां स्थापना दिवस है।

शहर की प्रमुख खासियत, स्थापत्य कला और इसकी अनमोल विरासतों की एक शृंखला शुरू कर रहा है। इसके लिए इतिहासकार महेश पुरोहित के शोध पत्र की पुस्तकों से जानकारी ली गई है। इन्हीं उल्लेखित संदर्भों के अनुसार रावल वीरसिंह देव ने कार्तिक शुक्ला एकादशी, विक्रम संवत 1339 (1282 ई.) के दिन डूंगरपुर नगर की खूंटी गाड़ी।

यही दिन डूंगरपुर नगर का स्थापना दिवस है। मैदानी क्षेत्र में स्थित समृद्ध राजधानी की रक्षा के लिए किसी प्रकार के भौगोलिक अवरोध नहीं थे। दिल्ली व मेवाड़ से मालवा और गुजरात का मार्ग यहां से होकर भी था, इसलिए सेनाएं आते-जाते इसे लूटती, नष्ट करती रहती थी।

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शुरू में इस शहर का नाम डूंगर नं घरं था। यहां घर डूंगरों (पहाड़ों व ढलानों) पर बने हुए थे। इसका नाम बदलने के लिए महारावल भूचंड के समय कोई परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन भूचंड के पुत्र डूंगरसिंह ने डूंगर नं घरं का नाम बदलकर डूंगरपुर रखा। इतिहासविद्दो के अनुसार डूंगरपुर का नाम गिरीपुर भी था।

वागड़ राज्य से भी पुकारा जाता था। इसकी सीमा में प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, गुजरात के ईडर और उदयपुर के कई गांव तक थी। आज डूंगरपुर को पहाड़ों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। डूंगरपुर राज्य में शिक्षा की अलख जगाने वाले गोविंद गुरु, नाना भाई खाट और उनकी शिष्या कालीबाई के बलिदान को आज भी याद किया जाता है।

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