विराट गांव का अंधेरी माता का मंदिर। सागवाड़ा से 10 किमी दूर बरबोदानिया मोड़ से करीब 5 किमी अंदर स्थित यह संभाग का सबसे ऊंचा 101 फीट का मंदिर है। इसे ओधेरी माता के नाम से भी जाना जाता है। किवंदति है कि पांडवों के अज्ञातवास के समय यहां विराटनगर की स्थापना हुई थी। युधिष्ठिर ने भगवान अर्धनारीश्वर की मूर्ति की स्थापना की थी। इसकी पुष्टि होती है कि विराट में पांच बड़े पत्थर घीसा बावजी के रूप में आज भी पूजे जाते हैं। जो पांडवों के प्रतीक है।
नवरात्र में देवी की पूजा और दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।
शिव गौरी का पूरा परिवार, लेकिन मां का दर्जा सबसे ऊपर, इसलिए अंधेरी माता के नाम से विख्यात करीब 8 फीट ऊंची चमकीले काले पत्थर से बनी प्रतिमा में आधा पुरुष और आधा नारी का आकार उकेरा हुआ है। ललाट में गणपति और पैरों के पास रिद्धि सिद्धि की मूर्तिया, सभी एक ही पाषाण पर बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरी हुई है।
विराट के अंधेरी माता मंदिर में मन्नत पूरी होने पर लोग चढ़ाते है चुनरी, शृंगार और आभूषण
मन्नते पूरी होने पर माता को चुनरी, श्रृंगार और सोना-चांदी के महंगे आभूषण चढ़ाते है। संतान की कामना पूरी होने पर पालना भी चढ़ाया जाता है। मंदिर में अर्धनारीश्वर के रूप मे अंधेरी माता की काले चमकीले पत्थर की आकर्षक प्रतिमा विराजित है। नीलकंठ मंदिर सरोदा के महंत रामदास महाराज इस प्रतिमा को पौराणिक काल मे राजा बली द्वारा स्थापित बताते है। गांव के बुजुर्गों की माने तो पांडवों के अज्ञातवास में यहां विराटनगर की स्थापना के समय राजा युधिष्ठिर ने अर्धनारीश्वर की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर और विराट गांव के आसपास खुदाई में आज भी सामान्य से दोगुनी बड़े आकार की ईंटें निकलती हैं। यहां खुदाई के दौरान निकले शिवलिंग को पास ही पहाड़ी पर मंदिर बना कर प्रतिष्ठित किया गया है। यहां के पुजारी वासुदेव सेवक बताते है कि उनके दादा स्व. मोतीराम सेवक समेत करीब 5 पीढिय़ों से उनके परिवार द्वारा माता की नियमित पूजा-अर्चना की जा रही है।
विराट गांव मे स्थित अंधेरी माता मंदिर मे स्थापित प्रतिमा
मान्यता : राजा युधिष्ठिर ने अर्धनारीश्वर की मूर्ति की स्थापना की थी, खुदाई मे ईट निकलती है तीन दशक पहले सड़क के किनारे खुली मूर्ति की होती थी पूजा, इसके बाद ग्रामीणों की पहल से बना मंदिर करीब 30 साल पहले तक गांव के पास खुली मूर्ति की पूजा होती थी। यहां कोई मंदिर बना हुआ नहीं था। लोग सिंदूर और पानियो (सोना, चांदी जैसे चमकीले कागज) का चौला चढ़ाते थे। किसी भक्त को देवी ने स्वप्न में मूर्ति का वास्तविक स्वरूप दिखाया। उसके बाद विधान के अनुसार मूर्ति की सफाई करने पर अर्धनारीश्वर का वर्तमान दिव्य स्वरूप सामने आया।
मूल प्रतिमा के ललाट मे गणपति और पैरों के पास रिद्धि-सिद्धि की मूर्तिया चमकीले काले पत्थर से बनी प्रतिमा मे आधा भाग नारी और आधा भाग पुरुष के आकार का बना हुआ है। एक ही पत्थर पर खूबसूरती के साथ बनाई गई प्रतिमा के ललाट में गणपति और पैरो के पास रिद्धि सिद्धि की मूर्तिया उकेरी हुई है। मूल प्रतिमा में एक हाथ मे कंगन और एक पैर में झांझर पहने दर्शाया गया है। जिससे श्रद्धालु मूर्ति मे आधा नारी का आकार मानकर अर्धनारीश्वर को पूजते है।
जन सहयोग से 101 फीट ऊंचा बना माता का मंदिर यहा के महंत रविदास महाराज ने बताया कि मंदिर मे हर साल आश्विन और चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन यज्ञ होता है। शरद पूर्णिमा को दिन मे विशाल मेला और रात को सामूहिक डांडिया रास का आयोजन होता है। अंधेरी माता मंदिर विकास, जीर्णोद्धार प्रबंध समिति के गोविंदराम पाटीदार, मगनलाल पाटीदार, गोकुलराम पाटीदार, डूंगरलाल पाटीदार और भीखालाल भाटिया समेत माता के भक्तों के प्रयासो से 101 फीट ऊंचा मूल मंदिर बन गया है। मंदिर के गुंबज और चौकी निर्माण के साथ ही फर्श, टाइल्स, रंगरोगन और परिसर के सौंदर्यीकरण का काम किया जाना है।