सागवाड़ा।देशभरमें होली के त्योहार को पारंपरिक तौर तरीकों से मनाया जाता है। सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र में इसके मायने कुछ खास हैं। यहां होली के आठ दिन पहले शुरू होने वाले कई पारंपरिक आयोजन होली के सप्ताहभर बाद भी चलते रहते हैं।
कोकापुर में दहकते अंगारों पर चलना, भीलूड़ा में पत्थरों और सागवाड़ा नगर में कंडों, टमाटर से राड खेलना, जेठाणा में गैर नृत्य, ओबरी में फुतरा पंचमी और बच्चों की ढूंढ रस्म-ये परंपराएं ऐसी हैं कि विदेशों में बसे स्थानीय नागरिक भी इस त्योहार पर घर आते हैं।
ढूंढोत्सवका विशेष महत्व
होली पर ढूंढोत्सव का सबसे खास महत्व है। जिसमें परिवार में जन्म लेने वाले शिशु की प्रथम होली पर उसे माता-पिता परिजनों के साथ होलिका का पूजन प्रदक्षीणा कराई जाती है। मान्यता है कि होली की अग्नि पवित्र होती है और उसकी तपन से नवजात शिशु निरोगी और दीर्घायु होता है।
देहात में बरसों पुरानी मान्यता
होलीके करीब एक माह पूर्व से ही शाम के समय कुंडी-ढोल बजना शुरू हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में युवाओं को गांव के चौराहों होली चौक पर एकसाथ परंपरागत वाद्य यंत्र कुंडी ढोल बजाकर गैर नृत्य खेलते देखा जा सकता हैं। होली चौकों पर दहन के दूसरे दिन फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा पर शाम को एक साथ कई ढोल कुंडियों की थाप पर अबीर-गुलाल से सराबोर होकर गैर नृत्य खेला जाता है। दो टोलियां आमने-सामने एक-दूसरे पर कंडे बरसाते हुए राड खेलती हैं।
सागवाड़ा: नगर में होली के बाद दूज से लेकर दशमी तक कंडों की राड खेली जाती है। जिसमें नेहरू पार्क के सामने आदिवासी समाज के बारह फलों के युवाओं द्वारा खेली जाने वाली कंडों की राड, परमारवाड़ा, डबगरवाड़ा, कंसारा चौक पोल के कोठे पर खेले जाने वाली कंडों की राड प्रमुख है। सही ही टमाटर की राड खेली जाती है । इसके अलावा नगर के पोल का कोठा पूजारवाड़ा क्षेत्र में होली की रात को तय स्थान पर लगी हुई पत्थर की पट्टिका पर युवाओं द्वारा मिट्टी से साडियाजी की प्रतिमाएं बनाई जाती है। जिसका नवविवाहितों सहित नागरिकों द्वारा दर्शन कर संतान प्राप्ति एवं संतान के दीर्घायु की कामना की जाती है।
कोकापुर: कोकापुर में होली के दहकते अंगारों पर चलने की सालों पुरानी परंपरा कायम है। श्रद्धा एवं आत्मविश्वास से भरी इस रोमांचकारी परंपरा के प्रति ग्रामीणों का अटूट विश्वास है। जिसमें होली दहन के दूसरे दिन सुबह में गांव के बुजुर्ग युवा होली चौक पहुंच कर होली माता के दर्शन के बाद दहकते अंगारे पार करते हैं। इसे देखने आसपास के गांवों से भी सैकड़ों की तादाद में लोग आते हैं।
भीलूड़ा: भीलूड़ामें रघुनाथजी मंदिर के पास होली के दूसरे दिन खेली जाने वाली पत्थरों की राड़ काफी प्रसिद्ध है। इसे देखने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते है। दो टोलियों द्वारा आपस में गोफण से पत्थर बरसाने के दौरान इस खेल में कई लोग घायल भी होते हैं। इसके अलावा संतान प्राप्ति की खुशी में सरोदा में होली पर प्रत्येक घर में एक-एक किलो गुड बांटा जाता है।
