सागवाड़ा/आसपुर मार्ग पर ग्राम पंचायत ओड़ से तीन किलोमीटर दूर हनैला क्षेत्र मे ऊंची पहाड़ी पर स्थित जेथोलेश्वर महादेव मंदिर वागड़ मे केदारेश्वर के रूप में अपनी पहचान लिए हुए है। यह मंदिर 400 वर्ष पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि सागवाड़ा के जेथा सलाट नामक सोमपुरा ब्राह्मण की गाय को चरवाहा हनैला क्षेत्र में वन में चराई के लिए ले जाया करता था। शाम के समय दूध निकालने के दौरान गाय के थन से दूध नही निकलता था।
एक दिन जेथा स्वयं चरवाहे के साथ जंगल में गाय के पीछे गया उन्होंने देखा कि एक पहाड़ी पर जाकर झाड़ियो के बीच खड़ी होकर गाय के थन से दूध स्वत: निकल रहा था। यह देख कर जेथा कुल्हाड़ी लेकर उस पहाड़ी पर गया। झाड़ियां काटने लगा तब अचानक झाड़ियों के बीच कुल्हाड़ी एक पत्थर से लगी तब उसने झाड़ियां हटाकर देखा तो शिवलिंग नजर आया। इसके बाद हनैला सहित ओड, कोपड़ा और गामड़ा चरणीय के ग्रामीणों से मिलकर शिव मंदिर की स्थापना की। मंदिर का नाम जेथोलेश्वर रखा।
ओड़ गांव की तरफ झुका हुआ है यह मंदिर
वही इस मंदिर की एक अनूठी बात यह है कि यह चार अंगुल जितना ओडगांव की तरफ झुका हुआ है। फिर भी मंदिर मजबूती से खड़ा हुआ है। लोगों ने बताया कि सालों पहले अतिवृष्टि हुई थी तबसे ऐसा ही है।
मंदिर विकास के लिए हो रहे प्रयास
वर्तमान मे मंदिर विकास के लिए काफी प्रयास हो रहे है। वर्तमान में जेथोलेश्वर विकास समिति व ग्रामीणों द्वारा इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए प्रयास किए जा रहे है। जेथोलेश्वर महादेव मन्दिर को लेकर ओड, पाडवा, सामलिया व लीलवासा के युवाओ ने मिल कर महिमा जेथोलेश्वर की नाम से एक लघु फिल्म बनाई है। मंदिर के पास ही तालाब भी है।
यहां थाल चढ़ाना परंपरा
यहां ऊंची पहाड़ी पर स्थित जेथोलेश्वर महादेव को थाल का भोग चढ़ाने की परंपरा है। अपनी मनोकामना पूरी होने पर भगवान शिव को श्रद्धालुओं द्वारा भोग चढ़ाने की मन्नत ली जाती है। इसमें भगवान शिव को पूजा अर्चना करके राजस्थान के पारंपरिक भोजन लड्डू-बाटी का भोग चढ़ाया जाता है। जिसको आम बोली मेें थार कहते है।
पहाड़ी पर जेथोलेश्वर मंदिर
मंदिर ऊंची पहाड़ी पर होने के कारण वहा तक जाने के लिए सीसी सड़क बनी है। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां है। मंदिर विकास समिति अलग से सीसी सड़क का निर्माण भी करवाया है। मंदिर परिसर क्षेत्र में ही एक सामुदायिक भवन बना हुआ है। इसके अलावा, धार्मिक/सामाजिक आयोजन में बैठने व भोजन व्यवस्था के लिए अलग से किचन भी है।
महाशिवरात्रि पर विशेष
मंदिर मे शिवरात्रि व श्रावण मास मे भीड़ रहती है। इसके अलावा सोमवार व पूर्णिमा के दिनों मे दर्शनार्थियों की विशेष भीड़ रहती है। श्रावण मास के दौरान यहा ग्रामीणो की ओर से पंडितो के आचार्यत्व में रुद्राभिषेक किया जाता है। पूर्णाहुति पर गांव की तरफ से पापड़ी का भोग चढ़ाया जाता है। महाशिवरात्रि पर ओड, हनेला, कोपडा व गामडा चरणीया के युवा व्यवस्था करते हैं।
प्रकृति की गोद मे महादेव मंदिर
प्रकृति की विशुद्ध गोद मेहोने के कारण यह स्थानीय पर्यटकों को घूमने के लिए आकर्षित करता है। जिसकी वजह से यह एक धार्मिक स्थल है। इसी वजह से कुछ वर्ष पहले जर्मनी व स्विजरलेंड की विदेशी महिलाएं इस मंदिर को देखकर अभिभूत हुई।