सागवाड़ा। माही और मोरन नदियों के संगम पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर वागड़ क्षेत्र की आस्था का बड़ा केंद्र है। यह मंदिर सागवाड़ा उपखंड मुख्यालय से 15 किमी दूर है। भीलूड़ा, दिवड़ा बड़ा और कानपुर रोड के मोड़ से 6 किमी अंदर वांदरवेड गांव के पास स्थित है।
इसी कारण यह मंदिर नीलकंठ महादेव वांदरवेड के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है, जो आधा खंडित है। सावन माह में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस बार वागड़ में सावन 25 जुलाई 2025 से शुरू हो रहा है। बारिश के मौसम में मंदिर परिसर और आसपास का दृश्य बेहद मनमोहक हो जाता है।
मंदिर के पास ही माही और मोरन नदियां मिलती हैं। यह जलधारा आगे जाकर गुजरात के कडाणा डेम में मिलती है। संगम के पास कुंवारी कुंड होने से इसे त्रिवेणी संगम माना जाता है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि नीलकंठ महादेव हर मनोकामना पूरी करते हैं।
वर्ष 1893 में आई बाढ़ में मंदिर बह गया था। इसका जीर्णोद्धार वर्ष 1911 में हुआ। वर्ष 2015 में ग्रामीणों ने मंदिर परिसर को और सुंदर बनाया। मंदिर में हवन कुंड, अखंड धूणी, गौशाला और भोजनशाला भी बनी हुई है। यहां नियमित रूप से लघुरुद्र, रुद्राभिषेक और कालसर्प दोष शांति जैसे धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं।