अखिलेश पंड्या, सागवाड़ा। नगर से महज 4 किलोमीटर डूंगरपुर रोड़ पर स्थित गोवाड़िया गणपतिजी की महिमा निराली मानी जाती है। मान्यता है कि यहां भक्त अपनी जो इच्छा लेकर आता है गोवाड़िया गणपति भगवान उसे पूरी करते हैं। बरसों पहले जब लेउवा पाटीदार गुजरात से निकल कर आए तो अपने साथ अपने इष्ट भगवान गणेशजी और रिद्धि- सिद्धि की मूर्तियां भी लेकर आए थे।
वागड़ में आकर पाटीदारों ने पहले आज के पिपलागूंज के पास डेरा डाला और वहां पंचायत कर हुक्का पीने का त्याग किया। इस निर्णय को इतनी मजबूती से अमल में लाए कि हुक्के कुएं में फेंक दिए। गुजराती पाटीदार समाज की वंशावली के पीढ़ी दर पीढ़ी संधारित भाट के चोपड़े में उपलब्ध उल्लेखों के अनुसार पिपलागूंज से अलग अलग परिवार आसपास के गांवों में जा कर बस गए। गोवाड़ी में आए पाटीदारों ने भगवान गणेशजी की मूर्ति की स्थापना गांव के बीच में की। इसके बाद धीरे-धीरे मंदिर के चारों तरफ आबादी का विस्तार होता गया। मंदिर परिसर में प्राचीन पाषाण प्रतिमा पर शिलालेख भी है।
गणेशजी के दाहिने और बाएं तरफ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां विराजित:
मंदिर की खासियत यह है कि यहां भगवान गणेशजी की मूर्ति के दोनों तरफ दो अन्य मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। ग्रामीण इसे ही मंदिर का चमत्कार मानते हुए बताते है कि गणेशजी के दाहिने और बाएं तरफ रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां विराजित है। जो अपने भक्तों को मनवांछित फल देते हैं। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि गोवाडिया गणपतिजी के साथ दो ओर मूर्तियों की स्थापना भी उसी दिन हुई थी। जिसमें मोरडिया भैरवजी और अरथूणिया हनुमानजी के मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर भी सैंकड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं।
सद्बुद्धि-सद्मार्ग के देव हैं गोवाड़िया गणेशजी:
गोवाड़िया गणपतिजी को सद्बुद्धि और सद्मार्ग के देवता माना जाता है। गांव के होली चौक पर स्थित इस मंदिर में सैंकड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं। गांव के पाटीदार समाज के अलावा ब्राह्मण, भाट सहित सभी समाजों की अटूट आस्था से मंदिर की कीर्ति चारों तरफ फैलती गई। जिससे यहां डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों के साथ ही दूरदराज से दर्शनार्थी अपनी मन्नतें पूरी करने आते हैं। आसपास के गांवों के कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो नित्य दर्शन के लिए आते हैं। दूरदराज से आने वाले लोग बताते हैं कि जब भी कोई संकट या कसौटी का समय होता हैै तो गोवाड़िया गणपति के दर्शन और स्मरण से सही रास्ता मिल जाता है।
गांव के उप सरपंच वासुदेव पाटीदार, अशोक शर्मा, भगवतीलाल पाटीदार, पं शैलेंद्र भट्ट, ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष सुभाष भट्ट समेत युवा व बुजुर्ग बताते हैं कि पहले यहां छोटी डेरी के रूप में मंदिर था। इसके बाद 1989 में हिरी बाई गमीराजी गरोत पाटीदार ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।