अपने गढ़ से ग़ायब होती कांग्रेस

बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर कुल 17 चुनाव हुए हैं जिसमें  12 बार कांग्रेस जीती लेकिन इस बार कांग्रेस को प्रत्याशी तक नहीं मिल रहा

नये राजनीतिक समीकरणों के बीच कांग्रेस कमजोर दिखाई दे रही है वहीं भाजपा बाप की नई विचारधारा के साथ लड़ाई लड़ती नजर रही है

पंचायत राज चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन ने कांग्रेस को कमजोर किया 

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पंचायती राज चुनाव में कांग्रेस के जो नेता  BTP को रोकने की बात कर रहे थे वही अब बाप का समर्थन कर रहे

चंद्रेश व्यास/ सागवाडा। राजस्थान में बांसवाड़ा लोकसभा सीट वैसे तो कांग्रेस का गढ़ रही है, लेकिन यह सीट भी हर चुनाव में नए चेहरे पर दाव लगाती आई है।  2014 के बाद यहां दो बार से  बीजेपी को जीत मिल रही है, लेकिन दोनों बार प्रत्याशी नए रहे। यहां अब तक लोकसभा के कुल 17 चुनाव हुए हैं। इनमें से अधिकांश बार यानी 12 बार जीतने वाली कांग्रेस ने भी हर बार प्रत्याशी बदल कर ही विजयश्री मिली।यही स्थिति बीजेपी की भी रही है। दो बार से इस सीट पर काबिज बीजेपी इस बार यहां हैट्रिक लगाने की फिराक में है।

इस बार ख़ास बात यह है कि कांग्रेस के अपने इस गढ़ में कांग्रेस ग़ायब होती नज़र आ रही है। यही कारण रहा है कि कांग्रेस अब तक अपना प्रत्याशी नही उतार सकती है। भाजपा ने जहाँ कांग्रेस के क़द्दावर नेता हाल ही में भाजपा में आये महेंद्र जीत सिंह मालवीय को मैदान में उतारा है तो वही पहली बार बाप पार्टी मैदान  में है। बाप ने अपने सबसे ताक़तवर नेता विधायक राजकुमार रोत को मैदान में उतार दिया है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस यहां बाप को समर्थन दे सकती है लेकिन पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा जैसे नेता बाप से गठबंधन का विरोध कर रहे हैं।

इसीलिए कांग्रेस अब तक कोई फ़ैसला नही कर पाई है। बाप के नेता राजकुमार रोत पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के क़रीब है ऐसे में वे कांग्रेस के समर्थन को लेकर आश्वस्त हैं। हालाँकि इन सब राजनीतिक समीकरणों के बीच कांग्रेस कमजोर दिखाई दे रही है वहीं भाजपा बाप की नई विचारधारा के साथ लड़ाई लड़ती नजर आ रही है।

बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ। उस समय कांग्रेस के भीखाभाई चुने गए थे। उसके बाद 57 में कांग्रेस ने भोगीलाल पाडिया, 62 में रतनलाल, 67 में हीरजी भाई और 71 में हीरालाल डोडा को मैदान में उतारा। ये सभी चुनाव जीतते रहे। हालांकि 77 के चुनाव में जनता पार्टी के हीरा भाई ने कांग्रेस का विजय रथ थाम तो लिया, लेकिन 80 में हुए अगले चुनाव में ही एक बार फिर से कांग्रेस के भीखाभाई ने यह सीट पार्टी की झोली में डाल दी। अगले चुनाव में कांग्रेस ने प्रभुलाल रावत को सांसद बनवाया। हालांकि 89 में एक बार फिर हीराभाई जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत कर संसद पहुंच गए। 91 में यह सीट वापस कांग्रेस की झोली में पहुंच गई।

इस बार यहां से प्रभुलाल रावत सांसद बने। 96 में कांग्रेस के ताराचंद भगोरा, 98 में कांग्रेस के ही महेंद्रजीत सिंह मालवीय और 99 के चुनाव में फिर कांग्रेस के ताराचंद भगोरा यहां से चुने गए। 2004 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से धनसिंह रावत को लड़ाकर सांसद बनाया। फिर 2009 में कांग्रेस के ताराचंद भगोरा को यहां से संसद जाने का मौका मिला। इसके बाद 2014 में भाजपा के मानशंकर निनामा और 2019 में भाजपा के ही कनकलाल कटारा यहां से चुने गए।

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