डूंगरपुर सागवाड़ा मार्ग में स्थित टामटिया में वागड़शक्ति पीठ अम्बे माताजी का भव्य आकर्षक मन्दिर बना हुआ है।
इस मन्दिर का निर्माण ग्रामीणजनों एवँ भामाशाहों के आर्थिक सहयोग से गाँव के बीचों बीच भूभाग पर किया गया । इस भव्य आकर्षक मन्दिर के निर्माण में 5 वर्ष की लम्बी अवधि लगी । मन्दिर निर्माण से लेकर प्रतिष्ठा कार्यक्रम तक टामटिया गाँव के सर्व समाज का अपार तन मन एवँ धन से अपार जन सहयोग ,एकता, एकजुटता ,सर्वधर्म सम्भाव का आदर्श देखने को मिला।
मन्दिर की स्तिथि – इस भव्य विशाल माताजी प्रतिमा का निर्माण जय महादेव मूर्ति उद्योग सागवाड़ा के नितिन लक्ष्मीकांत सोमपुरा के निर्देशन देवल खेरवाड़ा गाँव से चयनित विशेष “काले पारेव” पत्थर से दक्षिण भारतीय काली मूर्ति की तरह शेर पर सवार विभिन्न आयुधों से सुज्जित शंख, चक्र,गदा,तलवार,धनुष,हाथ मे अक्षय पात्र लिए महाकाली,महालक्ष्मी,एवँ महासरस्वती का सम्मिश्रण लिए दस भुजाओं वाली जगद्जननी आद्यशक्ति माँ अम्बाजी की मनमोहक विशाल साढ़े तीन फीट ऊंची एवँ साढ़े तीन क्विंटल से भी ज्यादा वजनी भव्य एवँ आकर्षक पाषाण प्रतिमा लगभग 2 माह से भी ज्यादा अवधि से सहयोगी सतीश सोमपुरा डूंगरपुर के मार्गदर्शन में तैयार किया गया था ।
मन्दिर परिसर में गणपति मूर्ति ,भैरव मूर्ति के साथ 50 किलो से भी ज्यादा भारी अष्टधातु का माताजी का वाहन शेर एवँ विशाल त्रिशूल मन्दिर परिसर में स्थित है। माताजी मन्दिर पर ,मध्य भाग एवँ अग्र भाग पर स्वर्ण शिखर के साथ ध्वज पताका हेतु नीचे से शिखर तक लौहे की सीढियाँ बनी हुई हैं। तीज त्यौहार के अवसर पर ध्वज पताका समय समय पर बदली जाती हैं।
प्रतिष्ठा कार्यक्रम – वागड़शक्ति पीठ अम्बाजी माताजी मन्दिर की प्रतिष्ठा सर्ववसमाज टामटिया द्वारा प्रतिष्ठाचार्य हिमांशु पण्डया के निर्देशन में वागड़ परिक्षेत्र के विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मणों द्वारा पंच दिवसीय प्रतिष्ठा महोत्सव में 21 यज्ञ कुंड,शतचंडी याज्ञ एवँ हवनात्मक महारुद्र का वैदिक विधि अनुसार माताजी मूर्ति की स्थापना विशेष लग्न में अभिजीत मुहूर्त में गर्भगृह में स्थित पावासन पर रजत श्रीयंत्र पर स्थापित की गयी हैं ।
स्थापत्यकला कला – मन्दिर निर्माण माताजी मन्दिर का निर्माण वागड़ के ख्यातिप्राप्त वास्तुकला एवँ मन्दिर निर्माण के जानकार सोमपुरा सुदर्शन सोमपुरा के निर्देशन में धौलपुरी पत्थर से भव्य नक्काशी लिए तीन खण्डों में विभक्त मन्दिर परिसर गर्भगृह, गुम्बदनुमा मध्य भाग एवँ अग्रभाग के साथ शक्ति प्रवेश द्वार का निर्माण किया । इस मन्दिर निर्माण 5 वर्ष की लंबी अवधि में पूर्ण हुआ।
मन्दिर व्यवस्था दैनिक एवँ वार्षिक संचालन के लिए ग्रामीण जनों की कमेठी द्वारा समस्त गतिविधियों का संचालन गाँव के समाजसेवी महेश सुथार के साथ गाँव की कार्यकारिणी द्वारा किया जा रहा है।अम्बाजी माताजी मन्दिर प्रतिष्ठा कार्यक्रम के उपरांत वर्ष के प्रत्येक मास की शुक्ल अष्टमी को माताजी पूजन एवं शुभ मांगलिक अवसरों पर माताजी का दुर्गा शप्तशती के साथ विविध अनुष्ठान परिक्षेत्र के यजमानों से नियमित करवाया जा रहा है।
इस माताजी मूर्ति के दैवीय शक्ति के चमत्कारी प्रभाव के कारण इसके नियमित पूजन साधना का लाभ मन्दिर की चौखट में आये हर दीन दुःखियों, संतान समस्या,शारिरिक पीड़ा, विविध व्यक्तिगत समस्याओं की मनोकामना पूर्ण करने में सहायक सिद्ध हो रहा है इससे श्रद्धालु अपनी विभिन्न तरह की मनोकामनाएं लिए माँ के चौखट मे आते हैं। श्रद्धालुओं की मनोकामनाए पूर्ण होने पर यथायोग्य चढ़ावा भेट करते है। वागड़ शक्तिपीठ अम्बाजी माताजी की दोनों गुप्त नवरात्री,माघ ,आषाढ़ी, नवसंवत्सर चैत्र मास एवँ शारदीय नवरात्र आश्विन मास में विशेष सेवा पूजा,दुर्गा शप्तशती पाठ ,अनुष्ठान हवन कर्म आदि धार्मिक कार्य सम्पादित हों रहे है। यहां प्रतिदिन मन्दिर के पुजारी द्वारा दिन अनुसार अलग अलग रँग की साड़ियों से प्रतिदिन श्रृंगार कर नित्य दर्शन लाभ श्रद्धालुओं को जाता है।
इसमे अष्टमी,पूर्णिमा एवँ अमावस्या को तो श्रद्धालुओं को दर्शनों का तांता दिनभर बना रहता हैं ।इस हेतु मन्दिर परिसर में धार्मिक कार्यक्रम को वर्ष पर्यंत चलने से युवाओ,एवँ ग्रामीणों का अपार सहकार मिल रहा है।
माताजी साड़ी ,श्रृंगार सामग्री एवँ ध्वज पताका चढाने की विशेष परम्परा* इस मंदिर में अपनी मन्नत के रुप मे साड़ी ,माताजी श्रृंगार एवँ ध्वज पताका चढ़ाने की बाधा ली जाती हैं जो मातारानी की कृपादृष्टि से अल्प समय मे ली गयी बाधा पूर्ण होने से श्रद्धालुओं का दैवीय शक्ति के प्रति आसपास परिक्षेत्र के लोगों का अधिक जुड़ाव हो गया है।
पुजारी – सेवक परिवार जिसमे ईश्वर शर्मा एवँ ललित शर्मा द्वारा नियमित सेवा पूजा अर्चना की जा रही हैं।
आरती पूजा – प्रायः प्रातः एवँ साँयकालीन दोनों समय आरती की जाती हैं । गर्मी के समय मे आरती का समय 7:30 बजे साँय एवँ सर्दियों में 7 बजे साँय रखा गया हैं। आरती मे आसपास परिक्षेत्र के श्रद्धालु उपस्थित होते है